थॉमसन प्रभाव (Thomson Effect)
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जानिए , थॉमसन प्रभाव –
थॉमसन ने सन् 1856 में प्रयोगों द्वारा बताया कि जब किसी धातु में जिसके विभिन्न भागों का ताप भिन्न भिन्न हो ,
विद्युत् धारा प्रवाहित की जाती है तो धातु के सम्पर्क भाग में ऊष्मा उत्पन्न होती है अथवा अवशोषित होती है। यह प्रभाव थॉमसन प्रभाव कहलाता है।
उदाहरणार्थ , यदि ताँबे की छड़ के एक सिरे को बर्फ के सम्पर्क में तथा दूसरे सिरे को भाप के सम्पर्क में रखा जाए और विद्युत् धारा गर्म सिरे से ठण्डे सिरे की ओर प्रवाहित की जाए तो सम्पर्क छड़ गर्म हो जाती है
अर्थात ऊष्मा उत्पन्न होती है।
इसके विपरीत यदि विद्युत् धारा ठण्डे सिरे से गर्म सिरे की ओर प्रवाहित की जाए तो सम्पूर्ण छड़ ठण्डी हो जाती हैं अर्थात ऊष्मा अवशोषित होती है।
इस समय थॉमसन प्रभाव धनात्मक कहलाता है। जिंक , चाँदी , एण्टीमनी आदि में धनात्मक थॉमसन प्रभाव होता है।
इसी प्रकार , जब लोहे की छड़ में विद्युत् धारा गर्म सिरे से ठण्डे सिरे की ओर प्रवाहित की जाती है तो ऊष्मा अवशोषित होती है
और जब विद्युत् धारा ठण्डे सिरे से गर्म सिरे की ओर प्रवाहित की जाती है तो ऊष्मा उत्पन्न होती है।
इस समय थॉमसन प्रभाव ऋणात्मक कहलाता है। निकल , बिस्मथ , प्लैटिनम आदि में ऋणात्मक थॉमसन प्रभाव होता है।
सीसे (लेड) की छड़ में थॉमसन प्रभाव नगण्य अथवा लगभग शून्य होता है।
पेल्टियर प्रभाव का कारण (Origin of Peltier Effect) :-
हम जानते है कि ताप वैद्युत युग्म की संधियों पर सम्पर्क पर विभव का मान समान , किन्तु दिशा विपरीत होती है।
जिस संधि पर बाह्य स्त्रोत से प्रवाहित विद्युत् धारा की दिशा सम्पर्क विभव के विपरीत होती है ,
वहाँ विद्युत् धारा को सम्पर्क विभव के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है जो उस संधि पर ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है।
अतः वह संधि गर्म हो जाती है।
जिस संधि पर विद्युत् धारा सम्पर्क विभव की दिशा में ही प्रवाहित होती है वहाँ सम्पर्क विभव के द्वारा कार्य किया जाता है।
कार्य के लिए आवश्यक ऊर्जा संधि से ली जाती है जिससे वह संधि ठण्डी हो जाती है।
पेल्टियर प्रभाव सीबेक प्रभाव का विलोम है –
ताँबे लोहे के ताप वैद्युत युग्म में सीबेक प्रभाव के अनुसार ठण्डी संधि पर ताप विद्युत् धारा लोहे से ताँबे की ओर प्रवाहित है।
किन्तु पेल्टियर प्रभाव के अनुसार इसी युग्म में लोहे से ताँबे की ओर किसी बाह्य स्त्रोत से विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर वह संधि गर्म हो जाती है।
यह भी उल्लेखनीय है कि सीबेक प्रभाव में ताप वैद्युत युग्म के दोनों संधियों के बीच तापान्तर होने पर ताप विद्युत धारा प्रवाहित होती है ,
जबकि पेल्टियर प्रभाव में ताप वैद्युत युग्म में धारा प्रवाहित करने पर दोनों संधियों के मध्य तापान्तर हो जाता है।
अतः पेल्टियर प्रभाव , सीबेक प्रभाव का विलोम है।
सीबेक प्रभाव का कारण (Origin of Seebeck Effect) :-
विभिन्न धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का घनत्व भिन्न भिन्न होता है।
यह धातु के पदार्थ की प्रकृति और उसके ताप पर निर्भर करता है।
जब दो विभिन्न धातुओं को जोड़ा जाता है।
तो संधि पर मुक्त इलेक्ट्रॉन अधिक घनत्व वाली धातु से कम घनत्व वाली धातुओं की ओर विसरित होने लगते हैं।
इस विसरण के कारण संधि पर एक विभव उत्पन्न हो जाता है
जिसे सम्पर्क विभव (Contact potential ) कहते हैं।
जब किसी ताप वैद्युत युग्म के दोनों संधियों का ताप समान होता है तो संधियों पर सम्पर्क विभव समान तथा विपरीत होते हैं।
अतः ताप वैद्युत युग्म में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती। जब किसी संधि को गर्म किया जाता है
तो उस संधि का सम्पर्क विभव बढ़ जाता है।
फलस्वरूप दोनों संधियों के मध्य विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है ,
जिसे ताप वि. वाहक बल कहते हैं।
इस ताप विद्युत् वाहक बल के कारण ताप वैद्युत युग्म में धारा प्रवाहित होने लगती है।
यही सीबेक प्रभाव है।
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